गैसों का द्रवीकरण [ Liquefication of gases]

गैसों का द्रवीकरण [ Liquefication of gases] अणुओं के मध्य आकर्षण बल बढ़ जाता है तथा अणु एक – दूसरे के पास आ जाते हैं तथा गैस द्रवित हो जाती हैं। गैसों का द्रवीकरण से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।

  • क्रान्तिक घटनाएं
  • गैसों का द्रवीकरण
  • गैसों के द्रवीकरण की विधियाँ
  • गैसों के द्रवीकरण के उपयोग

जैसे महत्वपूर्ण टॉपिक से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी है।

क्रान्तिक घटनाएं

क्रान्तिक ताप ( Critical Temperature ) ( Tc) – वह अधिकतम ताप जिस पर कोई गैस पर्याप्त दाब लगाने से द्रव अवस्था में परिवर्तित हो जाती है , उसे क्रान्तिक ताप कहते हैं । इससे अधिक ताप पर यह गैस ही होगी ।

क्रान्तिक दाब ( Critical Pressure ) ( Pc ) – किसी गैस को उसके क्रान्तिक ताप पर द्रवित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम दाब को उस गैस का क्रान्तिक दाब कहते हैं ।

क्रान्तिक आयतन ( Critical Volume ) – क्रान्तिक ताप तथा क्रान्तिक दाब पर किसी गैस के एक मोल का आयतन क्रान्तिक आयतन कहलाता है ।

क्रान्तिक स्थिरांक ( Critical Constants ) – क्रान्तिक ताप , क्रान्तिक दाब तथा क्रान्तिक आयतन को सम्मिलित रूप से क्रान्तिक स्थिरांक कहते हैं । प्रत्येक गैस के लिए क्रान्तिक स्थिरांकों ( Tc , Pc तथा Vc ) के मान निश्चित होते हैं ।

क्रान्तिक ताप तथा क्रान्तिक दाब पर गैस तथा द्रव अवस्था समान हो जाती है । गैस की इस अवस्था को उसकी क्रान्तिक अवस्था कहते है ।

गैसों का द्रवीकरण ( Liquefication of gases )

गैसों के अणु निरन्तर गतिशील होते हैं तथा एक – दूसरे से पर्याप्त दूरी पर होते हैं । ताप में कमी तथा दाब में वृद्धि करके सभी गैसों को द्रवित किया जा सकता है । क्योंकि इस स्थिति में गैसों की गतिज ऊर्जा कम हो जाती है ।

अतः अणुओं के मध्य आकर्षण बल बढ़ जाता है तथा अणु एक – दूसरे के पास आ जाते हैं तथा गैस द्रवित हो जाती हैं।

गैसों के द्रवीकरण में दाब की तुलना में ताप का प्रभाव अधिक महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि सभी गैसों को वायुमण्डलीय दाब पर तो द्रवित किया जा सकता है लेकिन कमरे के ताप पर सभी गैसों को द्रवित नहीं किया जा सकता है ।

गैसें ठंडी होने पर व उच्च दाब के अनुप्रयोगों पर या आपस में संयोजन के प्रभाव द्वारा द्रव में बदल जाती हैं सर्वप्रथम फैराडे ( 1823 ) ने गैसों के द्रवीकरण के लिए सफल प्रयास किये ।

गैसें जिनमें अन्तराण्विक आकर्षण बहुत कम होता है जैसे H2 , N2 , Ar और O2 , में Tc का मान बहुत कम होता है ,और इन्हें दाब के अनुप्रयोगों द्वारा द्रव में नहीं बदला जा सकता । इन्हें स्थायी गैसें ( permanent gases ) कहा जाता है , जबकि गैसें जिनमें अन्तर आण्विक आकर्षण अधिक होता है , जैसे ध्रुवीय अणु NH3 , SO2 और H2O में Tc का मान अधिक होता हैं , और इन्हें आसानी से द्रव अवस्था में बदला जा सकता है ।

गैसों के द्रवीकरण की विधियाँ

आधुनिक तरीकों के अनुसार गैसें जो कि Tc के नीचे ताप पर हैं , लिन्डे ( Linde’s ) और क्लाउड ( Cloude’s ) विधि द्वारा द्रवीकृत होती हैं ।

( i ) लिन्डे की विधि ( Linde’s method ) : यह विधि जूल थॉमसन प्रभाव पर आधारित है । इसके अनुसार एक गैस के जो कि समदाबी प्रसार प्रक्रम से गुजरती है और उच्च दाब से निम्न दाब की ओर प्रवाहित होती है , में शीतलन द्वारा द्रवीकरण होता है ।

( ii ) क्लाउडे की विधि ( Claude’s method ) : यह विधि इस नियम पर आधारित है कि जब गैस समदाबीय प्रसार प्रक्रम से गुजरती है तब उस पर एक बाहरी दबाब ( इन्जन में पिस्टन के समान ) लगता है जिसकी वजह से उसे कुछ बाहरी कार्य करना पड़ता है , इसीलिए उसकी गति ऊर्जा के खर्च होने के कारण गैस का ताप घट जाता है ।

( iii ) रुद्घोष्मीय डीमैग्नेटाइजेशन द्वारा

गैसों के द्रवीकरण के उपयोग ( Uses of liquefied gases )

  • द्रवीकृत गैसों और उच्च दाब पर संपीड्य गैसों का उद्योगों में विस्तृत रूप से उपयोग होता है ।
  • द्रव अमोनिया और द्रव सल्फर डाई ऑक्साइड प्रशीतक की तरह उपयोग में लाये जाते हैं ।
  • द्रव कार्बन – डाई – ऑक्साइड का उपयोग सोडा फाऊन्टेन में होता है
  • द्रव क्लोरीन का उपयोग ब्लीचिंग और कीटाणुनाशक के रूप में किया जाता है ।
  • रॉकेट्स , जेट वायुयानों एवं बमों में द्रव वायु का प्रयोग होता है । जो ऑक्सीजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत है ।
  • सम्पीड़ित ऑक्सीजन का उपयोग वेल्डिंग आदि के लिए होता है ।
  • संपीड्य हीलियम का उपयोग वायुयान आदि में किया जाता है ।

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