आंतरिक ऊर्जा , ऊष्मा तथा कार्य [ Internal energy , heat and Work ]

आंतरिक ऊर्जा , ऊष्मा तथा कार्य [ Internal energy , heat and Work ] से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। 
निम्न सभी टॉपिक की महत्वपूर्ण जानकारी नीचे दी गयी  है 

  1. आन्तरिक ऊर्जा [ internal energy ]
  2. कार्य ( Work )
  3. ऊष्मा ( Heat )

आन्तरिक ऊर्जा [ internal energy ]

प्रत्येक निकाय में ऊर्जा की एक निश्चित मात्रा होती है जो कि निकाय में उपस्थित पदार्थ की प्रकृति , ताप तथा दाब इत्यादि पर निर्भर करती है ।

आन्तरिक ऊर्जा (U) : “ प्रत्येक तंत्र के अन्दर ऊर्जा की कुछ निश्चित मात्रा होती है , जिसे आंतरिक ऊर्जा कहते हैं ।

U = Uसंक्रमण + Uघूर्णन + Uकम्पन +Uबंधन + Uइलेक्ट्रॉनिक+……..

किसी निकाय में उपस्थित पदार्थ के कणों ( परमाणु , अणु या आयन ) की स्थानान्तरण , घूर्णन , कम्पन , गतिज ऊर्जा तथा उनमें उपस्थित इलेक्ट्रॉनों एवं नाभिकों की ऊर्जा को सम्मिलित रूप से निकाय की आन्तरिक ऊर्जा कहते हैं । अथवा किसी निकाय की रासायनिक वैद्युत तथा यांत्रिक ऊर्जा के योग को आन्तरिक ऊर्जा कहते हैं ।

U की इकाई – अर्ग ( CGS में ) , या जूल ( SI में ) होती है । 1 जूल = 107 अर्ग

आन्तरिक ऊर्जा को U द्वारा प्रदर्शित किया जाता है । पदार्थ की प्रकृति , ताप तथा दाब जिन पर निकाय की ऊर्जा निर्भर करती है , निकाय की अवस्था निर्धारित करते हैं ।

अतः आन्तरिक ऊर्जा निकाय की अवस्था पर निर्भर करती है न कि अवस्था परिवर्तन के पथ पर । अतः आन्तरिक ऊर्जा एक अवस्था फलन है ।

अवस्था फलन ( State Function ) – किसी निकाय के वे मूलभूत गुण ( ऊष्मागतिक गुण ) जो निकाय ( तंत्र ) की अवस्था को निर्धारित करते हैं , उन्हें अवस्था फलन कहते हैं

आन्तरिक ऊर्जा का निरपेक्ष मान ज्ञात करना संभव नहीं है क्योंकि यह अनेक अनिर्धारित कारकों पर निर्भर करती है लेकिन ऊष्मागतिकी में आन्तरिक ऊर्जा के निरपेक्ष मान ( परम मान ) की आवश्यकता नहीं होती है केवल अवस्था परिवर्तन के कारण होने वाला आन्तरिक ऊर्जा परिवर्तन ही महत्त्वपूर्ण होता है , जिसे आसानी से ज्ञात किया जा सकता है ।

यदि प्रारम्भिक अवस्था ( A ) तथा अन्तिम अवस्था ( B ) में किसी निकाय की आन्तरिक ऊर्जा क्रमश : UA तथा UB है तो आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन ( △U ) = UB – UA

सामान्यतः निकाय की आन्तरिक ऊर्जा को ही निकाय की ऊर्जा कहा जाता है ।

ऊर्जा कहा आन्तरिक ऊर्जा के मुख्य लक्षण

  1. आन्तरिक ऊर्जा एक अवस्था फलन है अर्थात् यह केवल निकाय की प्रारम्भिक तथा अन्तिम अवस्था पर निर्भर करती है न कि उस पथ पर जिसके द्वारा परिवर्तन हुआ है ।
  2. आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन (△U) एक बीजगणितीय राशि है अतः इसका मान धनात्मक (+△U) या ऋणात्मक (-△U) हो सकता है ।
  3. निकाय द्वारा ऊर्जा अवशोषित करने पर इसे (+△U) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तथा इस स्थिति में निकाय की ऊर्जा में वृद्धि होती है ।
    लेकिन निकाय द्वारा ऊर्जा उत्सर्जित करने पर इसे (-△U ) द्वारा प्रदर्शित करते हैं तथा इस स्थिति में निकाय की ऊर्जा में कमी होती है ।
  4. आन्तरिक ऊर्जा , निकाय में उपस्थित पदार्थ की मात्रा पर निर्भर करती है , अतः यह एक मात्रात्मक गुण ( विस्तीर्ण गुण ) है ।
  5. किसी चक्रीय प्रक्रम में आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन शून्य होता है । अतः △U = 0
  6. आदर्श गैस की आंतरिक ऊर्जा केवल ताप का फलन है ।
  7. तंत्र की आंतरिक ऊर्जा पदार्थ की मात्रा उसकी रासायनिक प्रकृति , ताप , दाब तथा आयतन पर निर्भर करती है ।

कार्य ( Work )

जब किसी निकाय की अवस्था में परिवर्तन किया जाता है तो निकाय की ऊर्जा भी परिवर्तित होती है । इस ऊर्जा परिवर्तन को कार्य द्वारा व्यक्त किया जाता है ।

  • जब निकाय द्वारा परिवेश पर कार्य किया जाता है तो निकाय की आन्तरिक ऊर्जा कम हो जाती है । इसके विपरीत यदि परिवेश द्वारा निकाय पर कार्य किया जाता है तो निकाय की आन्तरिक ऊर्जा बढ़ जाती है ।
  • यदि उपरोक्त परिवर्तनों में ऊष्मा का स्थानान्तरण नहीं होता है । अर्थात् ये रुद्घोष्म प्रक्रम है तो निकाय पर किया गया कार्य , निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि करता है । अर्थात् △U = Wad कार्य हमेशा किसी बाह्य बल के विरुद्ध होता है ।

कार्य निम्नलिखित प्रकार के होते हैं मुख्यतः

  • यांत्रिक कार्य ( Mechanical Work ) – किसी यांत्रिक बल के विरुद्ध किया गया कार्य यांत्रिक ऊर्जा कहलाता है ।
  • विद्युत कार्य ( Electrical Work ) – विद्युत बल के विरुद्ध किया गया कार्य विद्युत कार्य कहलाता है ।
  • गुरुत्वीय कार्य ( Gravitational Work ) – जब गुरुत्वीय बल के विरुद्ध कार्य किया जाता है तो इसे गुरुत्वीय बल कहा जाता है ।

SI मात्रक में कार्य को जूल में तथा CGS मात्रक में इसको अर्ग में व्यक्त किया जाता है ।

ऊष्मा ( Heat )

ऊष्मा , ऊर्जा का ही एक रूप है तथा वह ऊर्जा विनिमय जो ताप में अन्तर के कारण होता है उसे ऊष्मा कहते हैं तथा इसे q द्वारा प्रदर्शित किया जाता है ।

  1. ऊष्मा का प्रवाह तब ही होता है जब निकाय की अवस्था में परिवर्तन हो ।
  2. ऊष्मा परिवर्तन के प्रभाव को ताप के रूप में देखा जा सकता है ।
  3. ऊष्मा का प्रवाह हमेशा उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है ।
  4. कार्य के समान ऊष्मा भी एक बीजगणितीय राशि है अतः इसका मान भी धनात्मक या ऋणात्मक हो सकता है ।
  5. जब निकाय परिवेश से ऊष्मा ग्रहण करता है तो इसे + q से तथा जब निकाय परिवेश को ऊष्मा प्रदान करता है , तो इसे -q से दर्शाया जाता है ।
  6. ऊष्मा का मान निकाय के अवस्था परिवर्तन के पथ पर निर्भर करता है अतः ऊष्मा अवस्था फलन नहीं है ।
  7. ऊष्मा का SI मात्रक जूल ( J ) , तथा CGs मात्रक कैलोरी Cal . ) होता है । 1 Cal = 4.2 J

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