मृदा प्रदूषण – मृदा प्रदूषण के कारण और उपाय ,भूमि या मृदा के भौतिक , रासायनिक अथवा जैविक गुणों में इस प्रकार का परिवर्तन जिससे इसकी उपयोगिता कम हो जाए अथवा नष्ट हो जाए तथा जिसका मनुष्यों और अन्य जीवों पर विपरीत प्रभाव पड़े भूमि प्रदूषण कहलाता है ।
मृदा प्रदूषण के स्रोत
Source of Soil Pollution
प्राकृतिक स्रोत ( Natural Sources ) –
- ज्वालामुखी भूकम्प , भूस्खलन तथा वर्षा , मृदा प्रदूषण के मुख्य प्राकृतिक स्रोत हैं ।
- ज्वालामुखी विस्फोट से बहुत बड़ी मात्रा में राख , लावा तथा गैसें निकलती हैं । लावा धरती के जिस भाग पर बहता है उसे यह हर दृष्टिकोण से अयोग्य बना देता है ।
- भूकम्प से पृथ्वी की सतह पर उथल – पुथल होती है , इससे भूमि अयोग्य हो जाती है ।
- राख भूमि पर गिरकर उसे प्रदूषित करती है । गैसीय पदार्थ वर्षा के साथ धरती पर पहुँच कर इसे प्रदूषित करते हैं ।
- औद्योगिक अपशिष्ट आस – पास के क्षेत्र की भूमि को प्रदूषित करते हैं ।
- मार्बल उद्योग द्वारा फेंका गया सफेद चूर्ण व्यापक रूप से भूमि को प्रदूषित करता है ।
- नगरीय अपशिष्ट के कारण नगरों के आस – पास की भूमि प्रदूषित हो जाती है ।
मृदा प्रदूषण के मुख्य कारक पीड़कनाशी , कीटनाशी तथा शाकनाशी होते हैं ।
पीड़कनाशी ( Pesticides ) – पहले प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले अनेक रसायन जैसे निकोटिन ( खेत में फसल के साथ तम्बाकू के पौधे उगाकर ) का प्रयोग अनेक फसलों के लिए पीड़क – नियंत्रक पदार्थ के रूप में किया जाता था ।
द्वितीय विश्व युद्ध के समय मलेरिया तथा अन्य कीटजनित रोगों के नियंत्रण के लिए डी.डी.टी. का प्रयोग किया गया ।
इसलिए युद्ध के पश्चात् इसका उपयोग कृषि में कीट , रोडेंट ( कृतक ) , खरपतवार तथा फसलों के अनेक रोगों के नियंत्रण के लिए किया जाने लगा था लेकिन इसके प्रतिकूल प्रभावों के कारण भारत में इसके प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है ।
पीड़कनाशी मूल रूप से संश्लेषित विषैले रसायन होते हैं , जो पारिस्थितिकी प्रतिघाती ( नुकसानदायक ) हैं। समान पीड़कनाशकों के प्रयोग से कीटों में उन पीड़कनाशकों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न हो जाती है , जिससे पीड़कनाशी प्रभावहीन हो जाता है ।
अतः जब डीडीटी के प्रति प्रतिरोधकता में वृद्धि होने लगी तो अन्य जीव – विष ( जैसे ऐल्ड्रिन तथा डाइऐल्ड्रिन ) जैसे पीड़कनाशी बनाए गए ।
अधिकांश कार्बनिक जीव – विष जल में अविलेय तथा अजैवनिम्नीकरणीय (होते हैं । ये उच्च प्रभाव वाले जीव – विष भोजन शृंखला द्वारा निम्नपोषी स्तर से उच्चपोषी स्तर तक स्थानान्तरित हो जाते हैं तथा समय के साथ – साथ उच्च प्राणियों में जीव – विषों की सान्द्रता इतनी बढ़ जाती है कि इनके कारण उनमें उपापचयी तथा शरीर क्रियात्मक अव्यवस्था हो जाती है ।
उच्च स्थायित्व वाले क्लोरीनीकृत कार्बनिक जीव – विष के स्थान पर निम्न स्थायित्व अथवा अधिक जैव निम्नीकरणीय उत्पादों , जैसे आर्गेनो – फॉस्फेट तथा कार्बामेट का प्रयोग किया जाने लगा है । परन्तु ये रसायन गम्भीर स्नायु जीव – विष ( Nerve Toxins ) हैं । अतः ये मानव के लिए अधिक हानिकारक हैं तथा आजकल कीट भी इन कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधी हो चुके हैं ।
शाकनाशी ( Herbicides ) — आजकल विभिन्न प्रकार के शाकनाशी प्रयुक्त किए जाते हैं , जैसे – सोडियम क्लोरेट ( NaClO3 ) , सोडियम आर्सिनेट ( Na3AsO3 ) इत्यादि । लेकिन अधिकांश शाकनाशी स्तनधारियों के लिए विषैले होते हैं , परन्तु ये कार्ब- क्लोराइडों के समान स्थायी नहीं हैं अतः ये कुछ ही महीनों में अपघटित हो जाते हैं ।
कार्ब क्लोराइड की भाँति ये भी पौषी स्तर पर सान्द्रित हो जाते हैं । मानव में जन्मजात कमियों का कारण कुछ शाकनाशी हैं ।
यह देखा गया कि मक्का के वे खेत , जिनमें शाकनाशी का छिड़काव किया गया है , कीटों के आक्रमण तथा पादप रोगों के प्रति उन खेतों की तुलना में अधिक सुग्राही होते हैं , जिनकी निराई हाथों से की जाती है ।
पीड़कनाशी तथा शाकनाशी रासायनिक प्रदूषण का एक छोटा – सा भाग है ।
वास्तव में विभिन्न वस्तुओं के उत्पादन के औद्योगिक तथा रासायनिक प्रक्रमों में निरन्तर प्रयोग में लिए जाने वाले अनेक यौगिक अंततः किसी न किसी रूप वायुमण्डल में मुक्त होते हैं , जिससे प्रदूषण फैलता है ।
मृदा प्रदूषण का नियंत्रण
Control of Soil Pollution
- उर्वरकों का अनियन्त्रित प्रयोग न करके प्राकृतिक खाद जैसे- जैव खाद , गोबर की कम्पोस्ट खाद , हरी खाद इत्यादि का प्रयोग करना चाहिए ।
- कूड़ा – करकट मृदा पर न डालकर उसे गहरे गड्ढे में डालकर उसका प्राथमिक उपचार किया जाए तथा यथासंभव उसे जैव खाद में परिवर्तित किया जाए ।
- रंजक उद्योग , चमड़ा उद्योग अथवा रासायनिक उद्योग की फैक्ट्रियों से निकलने वाले अपशिष्ट को प्राथमिक उपचार के बाद ही छोड़ा जाए ।
- मृदा की उर्वरकता बनी रहे , अतः फसलों का चक्रीकरण किया जाना चाहिए ।
- भूमि के कटाव को रोका जाए इसके लिए किनारों पर तटबन्ध बनाए जाएं । वनों को नष्ट होने से रोका जाए ; क्योंकि ये आँधी , बाढ़ तथा तूफानी हवाओं से मृदा के संक्षारण को रोकते हैं ।
- मिश्रित कृषि द्वारा भी मृदा संक्षारण को रोका जा सकता है ।
- सीमित क्षेत्र में खनन कार्य किया जाए । धातुकर्म से प्राप्त पदार्थों को सीमित क्षेत्र में ही डाला जाए ।