सरल आवर्त गति किसे कहते हैं [ Simple Harmonic Motion in Hindi ] प्रकार,परिभाषाएँ,सूत्र

सरल आवर्त गति किसे कहते हैं  [Simple Harmonic Motion in Hindi] प्रकार,परिभाषाएँ,सूत्र इस पोस्ट में सरल आवर्त गति किसे कहते हैं  [  Simple Harmonic Motion in Hindi ] प्रकार,परिभाषाएँ,सूत्र  से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। 

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सरल आवर्त गति के उदाहरण सरल आवर्त गति से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु ​,सरल आवर्त गति के प्रकार ( Types of Simple Harmonic Motion ) 

( i ) रेखीय सरल आवर्त गति ( Linear SHM ) 

( ii ) कोणीय सरल आवर्त गति ( Angular SHM ) 

को समावेश किया है, साथ में सभी महत्वपूर्ण सूत्र को अच्छे से लिखा गया है। फिर भी यदि कोई गलती है तो नीचे कमेंट करके   जरूर बताये

सरल आवर्त गति किसे कहते हैं  [  Simple Harmonic Motion in Hindi ] प्रकार,परिभाषाएँ,सूत्र

सरल आवर्त गति ( Simple Harmonic Motion ) 

सरल आवर्त गति एक इस प्रकार की दोलन गति है , जिसमें वस्तु एक माध्य स्थिति के दोनों ओर आवर्त गति करती है । 

इस गति में वस्तु पर माध्य स्थिति की ओर एक प्रत्यानयन बल सदैव कार्य करता है एवं किसी भी क्षण प्रत्यानयन बल का परिमाण वस्तु के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती होता है 

F\propto -x
F = -kx

यहाँ , k बल नियतांक है । 

सरल आवर्त गति को गणितीय रूप में एकल आवर्ती फलन ( sine या cosine ) से व्यक्त किया जाता है ।

सरल आवर्त गति के प्रकार ( Types of Simple Harmonic Motion ) 

सरल आवर्त गति दो प्रकार की होती है 

( i ) रेखीय सरल आवर्त गति ( Linear SHM ) 

जब एक कण एक निश्चित बिन्दु ( जो कि साम्य स्थिति कहलाती है ) के सापेक्ष इधर – उधर आवर्ती गति एक सरल रेखा में करता है तो इस प्रकार की गति को रेखीय सरल आवर्त गति कहते हैं । उदाहरण स्प्रिंग से जुड़े हुए द्रव्यमान की गति । 

( ii ) कोणीय सरल आवर्त गति ( Angular SHM ) 

जब कोई पिण्ड निकाय किसी नियत अक्ष के सापेक्ष , कोणीय आवर्त गति करे , तो इस प्रकार की गति को कोणीय सरल आवर्त गति कहते हैं । उदाहरण सरल लोलक के गोलक की गति

कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ(Some Important Definitions ) 

माध्य स्थिति ( Mean Position ) 

वह बिन्दु जहाँ कण पर कार्यरत प्रत्यानयन बल का मान शून्य और स्थितिज ऊर्जा न्यूनतम होती है , माध्य स्थिति कहलाती है । 

प्रत्यानयन बल ( Restoring Force ) 

कण पर कार्यरत् वह बल जो कि कण को उसकी माध्य स्थिति की ओर लाने का प्रयास करता है , प्रत्यानयन बल कहलाता है । यह बल सदैव विस्थापन के विपरीत दिशा में कार्यरत् होता है । विस्थापन माध्य स्थिति से नापा जाता है

आयाम ( Amplitude ) 

कण का माध्य स्थिति से अधिकतम विस्थापन ( धनात्मक या ऋणात्मक ) आयाम कहलाता है । चूँकि sin या cos फलन के अधिकतम व न्यूनतम मान +1 तथा -1 होते हैं इसलिए आयाम A होगा ।

विस्थापन

सरल आवर्त गति में कण का विस्थापन निम्न प्रकार से व्यक्त किया जाता है

Y =A \sin(\omega t +\phi)

जहाँ A गति का आयाम , ω कोणीय आवृत्ति ω= 2π/T = 2πv तथा ϕ प्रारम्भिक कला कोण है । 

विस्थापन को निम्न प्रकार भी व्यक्त किया जा सकता है 

x=A \cos(\omega t+\phi)

वेग ( Velocity )

सरल आवर्त गति करते कण का वेग किसी समय विस्थापन में परिवर्तन की दर से परिभाषित किया जाता है ।

v =\omega \sqrt{A^2 -y^2}

माध्य स्थिति पर (y=0) ; v=Aω=v अधिकतम  

चरम स्थिति पर  (y=± A) ; v=0

वेग{अधिकतम } का परिमाण  v =Aω

त्वरण (Acceleration)

सरल आवर्त गति करते कण का त्वरण किसी समय वेग में परिवर्तन की दर से परिभाषित किया जाता है।

त्वरण a=−ω2y

माध्य स्थिति पर (y=0) ; a=0 

चरम स्थिति पर (y=±A); amax= ±Aω2

 त्वरण का परिमाण amax= Aω2

कला या कला कोण (Phase or Phase Angle)

वह भौतिक राशि जिसके द्वारा आवर्त गति कर रहे कण की साम्यावस्था से स्थिति तथा उसकी दिशा का बोध होता है, कला कहलाती है।

y=a \sin \theta=a \sin (\omega t+\phi)

यहाँ θ=ωt+ϕ0 = कम्पन करते हुए कण की कला

आवृत्ति (Frequency) 

1 सेकण्ड में वस्तु द्वारा किए गए कम्पनों की संख्या आवृत्ति कहलाती है। इसे n से व्यक्त करते हैं।

n=1/T, यहाँ T= आवर्तकाल है।

कला सम्बन्ध (Phase Relationship) 

सरल आवर्त गति में वेग की कला, विस्थापन से π/2 कोण तथा त्वरण की कला, वेग से π/2 कोण आगे रहती है।

आवर्तकाल (Time Period)

a =-\omega^{2} y 
|a| =\omega^{2}|y| 
\omega  =\sqrt{\frac{|a|}{|y|}}

सरल आवर्त गति का आवर्तकाल

T=\frac{2 \pi}{\omega}=2 \pi \sqrt{\frac{|y|}{|a|}}=2 \pi \sqrt{\frac{\text { displacement }}{\text {acceleration}}}

सरल आवर्त गति की ऊर्जा ( Energy of SHM ) 

यदि m द्रव्यमान का एक कण सरल आवर्त गति कर रहा है , तो माध्य स्थिति से विस्थापन पर कण में स्थितिज व गतिज ऊर्जा दोनों होंगी ।

x विस्थापन पर

स्थितिज ऊर्जा 

U = \frac{1}{2}m\omega^2x^2=\frac{1}{2}kx^2

 तथा गतिज ऊर्जा :

 K = \frac{1}{2}m\omega^2(A^2-x^2)= \frac{1}{2}k(A^2-x^2)

कुल ऊर्जा   E = U + K 

E =U+K=\frac{1}{2}m\omega^2A^2

यदि घर्षण नगण्य हो , तो निकाय की कुल ऊर्जा सदैव नियत रहती है , जबकि स्थितिज एवं गतिज ऊर्जा में परिवर्तन होता रहता है ।

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