भूमण्डलीय ताप वृद्धि तथा हरित गृह ( ग्रीन हाउस ) प्रभाव

भूमण्डलीय ताप वृद्धि तथा हरित गृह ( ग्रीन हाउस ) वायुमण्डल में उपस्थित गैसों ( CO2 , O3 , क्लोरोफ्लोरोकार्बन ( CFC ) तथा जलवाष्प द्वारा सौर ऊष्मा को ग्रहण करने के कारण वायुमण्डलीय ताप में वृद्धि हो रही है , इसे भूमण्डलीय ताप वृद्धि ( Global warming ) कहते हैं ।

भूमण्डलीय ताप वृद्धि तथा हरित गृह ( ग्रीन हाउस ) प्रभाव इससे जुड़ी विस्तृत जानकारी दी गई है।

भूमण्डलीय ताप वृद्धि तथा हरित गृह प्रभाव
Global Warming and Green House Effect

सौर ऊर्जा का 75 % भाग पृथ्वी की सतह द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है , जिससे इसके ताप में वृद्धि होती है । ऊष्मा की शेष मात्रा वायुमण्डल में पुनः विकिरित ( Radiated ) हो जाती है ।

ऊष्मा का कुछ भाग वायुमण्डल में उपस्थित गैसों जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड , ओजोन , क्लोरोफ्लोरोकार्बन तथा जलवाष्प द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है , जिससे वायुमण्डल के ताप में वृद्धि होती है ।

हरित गृह किसे कहते है ?

ठण्डे स्थानों पर फूल , सब्जियाँ फल आदि काँच के आवरण जिसे ‘ हरितगृह ‘ कहते हैं , में विकसित किए जाते हैं । इसी प्रकार मनुष्य भी एक प्राकृतिक हरित गृह में रहता है , जो कि वायु का एक आवरण है , जिसे ‘ वायुमण्डल ‘ कहते हैं , जिसके कारण शताब्दियों से पृथ्वी का ताप स्थिर है , परन्तु आजकल इसमें धीरे धीरे परिवर्तन हो रहा है ।

प्राकृतिक हरित गृह प्रभाव किसे कहते है ?

जिस प्रकार हरितगृह में काँच सूर्य की गरमी को अन्दर थामे रखता है , उसी प्रकार वायुमण्डल भी सूर्य की ऊष्मा को पृथ्वी के निकट अवशोषित कर लेता है इससे पृथ्वी गरम रहती है । इसे ‘ प्राकृतिक हरितगृह प्रभाव ‘ कहते हैं , क्योंकि यह पृथ्वी के तापमान को संरक्षित ( maintain ) करके उसे जीवन – योग्य बनाता है ।

दृश्यप्रकाश हरितगृह के पारदर्शी काँच में से गुजरकर , सूर्य के विकिरण द्वारा मृदा तथा पौधों को गरम रखता है ।

गरम मृदा तथा पौधे ऊष्मीय क्षेत्र के अवरक्त विकिरणों का उत्सर्जन करते हैं । चूँकि यह काँच विकिरण के लिए अपारदर्शक होता है , अतः यह इन विकिरणों को आंशिक रूप से अवशोषित तथा शेष को परावर्तित कर देता है । इस क्रियाविधि से हरितगृह में सौर ऊर्जा संगृहीत रहती है ।

इसी प्रकार कार्बन डाइऑक्साइड के अणु ऊष्मा को संगृहीत कर लेते हैं , क्योंकि ये सूर्य के प्रकाश के लिए पारदर्शक होते हैं , ऊष्मा के विकिरणों के लिए नहीं ।

अतः जब कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 0.03 % से अधिक हो जाती है , तो प्राकृतिक हरितगृह का संतुलन बिगड़ जाता है ।

इसलिए भूमण्डलीय तापवृद्धि में कार्बन डाइऑक्साइड का विशिष्ट योगदान होता है ।

कार्बन डाइऑक्साइड के अतिरिक्त अन्य हरितगृह गैसें , मेथेन ( CH4 ) , जलवाष्प , नाइट्रसऑक्साइड ( N2O ) , क्लोरोफ्लोरोकार्बन तथा ओजोन हैं ।

ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जब वनस्पतियों को जलाया या सड़ाया जाता है , तब मेथेन गैस उत्पन्न होती है । धान के क्षेत्रों , कोयले की खानों , दलदली क्षेत्रों तथा जीवाश्म ईंधनों द्वारा भी अधिक मात्रा में मेथेन उत्पन्न होती है ।

क्लोरोफ्लोरोकार्बन कृत्रिम रसायन है , जो वायुप्रशीतक आदि में काम आते हैं । ये भी ओजोन – परत को हानि पहुँचा रहे हैं । नाइट्रस ऑक्साइड ( N2O ) वातावरण में प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होता है , परन्तु पिछले कुछ वर्षों में जीवाश्म ईंधन एवं उर्वरकों केअधिक प्रयोग से इसकी मात्रा में काफी वृद्धि हुई है ।

भूमंडलीय ताप वृद्धि के प्रभाव

  1. भूमण्डल के ताप में इसी प्रकार वृद्धि होती रही तो ध्रुवों पर स्थित हिमनदों के पिघलने की दर अधिक हो जाएगी , जिससे समुद्र के जल – स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी के निचले स्थानों में जल भर जाएगा ।
  2. भूमण्डलीय तापवृद्धि के कारण बहुत से संक्रामक रोगों , जैसे- डेंगू , मलेरिया , पीत ज्वर , निद्रा रोग आदि में भी वृद्धि हो जाती है

भूमण्डलीय ताप वृद्धि को कम करने के उपाय

  • यातायात के व्यक्तिगत साधनों का प्रयोग कम करना चाहिए । तथा इसके स्थान पर साइकिल तथा जनसाधारण के यातायात के साधन ( Public Transport System ) काम में लेने चाहिए ।
  • कार पूल का प्रयोग करना चाहिए अर्थात् पास – पास रहने वाले एक ही विभाग के 3-4 कर्मचारी एक ही कार का प्रयोग कर सकते हैं ।
  • अधिक से अधिक संख्या में पौधे लगाकर हरित आवरण ( Green Coverage ) को बढ़ाने के प्रयास करने चाहिए ।
  • शुष्क पत्तियों , लकड़ी आदि को नहीं जलाना चाहिए ।
  • सार्वजनिक स्थानों तथा कार्यस्थलों पर धूम्रपान नहीं करना चाहिए क्योंकि यह केवल धूम्रपान करने वाले व्यक्ति के लिए ही नहीं , अपितु आसपास खड़े अन्य व्यक्तियों के लिए भी हानिकारक होता है ।
  • जो व्यक्ति हरित गृह प्रभाव तथा भूमण्डलीय तापवृद्धि के बारे में नहीं जानते हैं उन्हें इससे अवगत कराना चाहिए ।

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