रासायनिक आबंधन – VBT संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त ( Valence Bond Theory) से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है।
- संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त
- संयोजकता बंध सिद्धांत के मुख्य बिंदु
- संयोजकता आबंध सिद्धान्त की सीमाएँ
जैसे महत्वपूर्ण टॉपिक से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी है।
संयोजकता कोश इलेक्ट्रॉन युक्त प्रतिकर्षण ( VSEPR ) सिद्धान्त से सरल अणुओं की आकृति की जानकारी तो प्राप्त जाती है लेकिन सैद्धान्तिक रूप से इनकी व्याख्या नहीं की जा सकती है अत : इन कमियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित दो सिद्धान्त दिए गए जो क्वान्टम यांत्रिकी ( Quantum mechanics ) पर आधारित हैं ।
- संयोजकता आबंध सिद्धान्त तथा
- अणु कक्षक सिद्धान्त
संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त
ValenceBond Theory ( VBT )
संयोजकता आबन्ध सिद्धान्त सर्वप्रथम हाइटलर तथा लंडन ( 1927 ) ने दिया जिसका विकास पॉलिंग ने किया । यह सिद्धान्त परमाणु कक्षकों , तत्त्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास , परमाणु कक्षकों के अतिव्यापन , संकरण तथा विचरण ( Variation ) एवं अध्यारोपण के सिद्धान्त पर आधारित है ।
संयोजकता बंध सिद्धांत के मुख्य बिंदु
- जब दो परमाणु एक दूसरे के निकट आते हैं , तो उनके कक्षक एक दूसरे पर अतिव्यापित होते हैं और सहसंयोजक बन्ध का निर्माण करते हैं ।
- कक्षक जिनमें विपरीत चक्रण वाले अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित होते हैं एक दूसरे को अतिव्यापित करते हैं ।
- अतिव्यापन के बाद नया व्यवस्थित बन्धीय कक्षक बनता है जिसमें इलेक्ट्रॉन के पाये जाने की सम्भावना अधिकतम होती है ।
- एकत्रित इलेक्ट्रॉनों व नाभिक के मध्य विद्युतस्थैतिक आकर्षण के कारण व विपरीत चक्रण वाले इलेक्ट्रॉनों के द्वारा सहसंयोजक बन्ध का निर्माण होता है ।
- अतिव्यापन का परिमाण अधिक होने पर , बन्ध लम्बाई कम होगी तथा आकर्षण जितना अधिक होगा बन्ध ऊर्जा व बन्ध का स्थायित्व भी उतना ही अधिक होगा ।
- अतिव्यापन का परिमाण अतिव्यापन में भाग लेने वाले कक्षक व अतिव्यापन की प्रकृति पर निर्भर करता है ।
- यदि संयोजी कोश नाभिक के अधिक पास होगें तो उनकी बन्ध ऊर्जा व अतिव्यापन भी अधिक होगा ।
- दो उपकोशों के समान ऊर्जा स्तर के मध्य यदि उपकोश अधिक दिशात्मक है तो उनके मध्य अतिव्यापन अधिक होगा । बन्ध ऊर्जा : 2s – 2s > 2s – 2p > 2p – 2p
- s-कक्षक सममित गोलाकार होते हैं , इसलिए यह केवल शीर्षस्थ अतिव्यापन ( head on overlapping ) दर्शाते हैं जबकि p -कक्षक दिशात्मक होने के कारण शीर्षस्थ व पार्वीय दोनों में से किसी भी प्रकार का अतिव्यापन प्रदर्शित कर सकते हैं । विभिन्न प्रकार के अतिव्यापन सिग्मा (σ) एवं पाई (π) बन्ध देते हैं ।
संयोजकता आबंध सिद्धान्त की सीमाएँ
( Limitations of Valence Bond Theory )
- विषम संख्या में इलेक्ट्रॉन युक्त अणु या आयन को इस सिद्धान्त की सहायता से नहीं समझाया जा सकता ।
- यह सिद्धान्त उपसहसंयोजी बन्ध के बनने की व्याख्या भी नहीं करता ।
- संयोजकता आबंध सिद्धान्त के अनुसार ऑक्सीजन का अणु प्रतिचुम्बकीय होना चाहिए जबकि वास्तव में यह अनुचुम्बकीय होता है । इसकी व्याख्या करना संभव नहीं है ।
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