समतापमंडलीय प्रदूषण, ओजोन का विरचन एवं विघटन

समतापमंडलीय प्रदूषण ( Stratospheric Pollution ) – वायुमण्डल का सबसे निचला क्षेत्र जिसमें मनुष्य तथा अन्य प्राणी रहते हैं , उसे क्षोभमण्डल कहते हैं । यह क्षेत्र समुद्र तल से 10 किमी. तक होता है । इसके आगे के 40 किमी . तक का भाग समतापमण्डल कहलाता है।

ओजोन का विरचन एवं विघटन
( Formation and Breaking of Ozone )

ऊपरी समताप – मण्डल में ओजोन प्रचुर मात्रा में होती है , जो हमें सूर्य से आने वाले हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों से बचाती है । इन विकिरणों से त्वचा – कैंसर ( मेलेनोमा ) होता है । अतः ओजोन – कवच को बचाए रखना आवश्यक है ।

समतापमण्डल में पराबैंगनी विकिरणों की ऑक्सीजन से क्रिया द्वारा ओजोन का निर्माण होता है । पराबैंगनी विकिरण आण्विक ऑक्सीजन को मुक्त ऑक्सीजन ( O ) परमाणुओं में विखण्डित कर देते हैं जो कि आण्विक ऑक्सीजन से संयुक्त होकर ओजोन बनाते हैं ।

O2 (g) →UV→ O (g) + O (g)

O(g) + O2 (g) ⇌UV⇌ O3 (g)

ओजोन ऊष्मागतिकीय रूप से अस्थायी होती है एवं यह आण्विक ऑक्सीजन में विघटित हो जाती है । इस प्रकार ओजोन के निर्माण एवं विघटन के मध्य एक गतिक साम्य स्थापित हो जाता है ।

अभी हाल ही के वर्षों में समतापमण्डल में उपस्थित कुछ रसायनों के कारण ओजोन की इस सुरक्षा – परत का क्षय होना प्रारम्भ हो गया है ।

ओजोन परत के इस क्षय का मुख्य कारण क्लोरोफ्लोरोकार्बन ( फ्रेऑन ) ( CFCs ) का उत्सर्जन है । फ्रेऑन अक्रिय ,अज्वलनशील तथा अविषाक्त पदार्थ हैं , अतः इन्हें रेफ्रिजरेटर , एयर कंडीशनर , प्लास्टिक फोम के निर्माण में एवं इलेक्ट्रॉनिक उद्योग में कम्प्यूटर के पुर्जों की सफाई करने में प्रयुक्त किया जाता है ।

वायुमण्डल में एक बार फ्रेऑन के उत्सर्जित होने पर ये वायुमण्डल की अन्य गैसों के साथ मिलकर सीधे समतापमण्डल में पहुँच जाते हैं ।
समतापमण्डल में ये शक्तिशाली पराबैंगनी विकिरणों द्वारा विघटित होकर क्लोरीन मुक्त मूलक बनाते हैं ।

CF2CI2 (g) (फ्रेऑन) → Cl(g) + .CF2CI2 (g)

क्लोरीन मुक्त मूलक समतापमण्डल में स्थित ओजोन से अभिक्रिया करके क्लोरीन मोनोऑक्साइड मूलक ( .ClO ) तथा आण्विक ऑक्सीजन बनाते हैं ।

.Cl (g) + O3 (g) → .ClO (g) + O2 (g)

क्लोरीन मोनोऑक्साइड मूलक परमाण्वीय ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया करके अधिक क्लोरीन मूलक उत्पन्न करता है ।

.ClO (g) + O (g) → .Cl (g) + O2 (g)

इस प्रकार क्लोरीन मूलक लगातार बनते रहते हैं तथा ओजोन को विखण्डित करते हैं ।

अत : CFC समतापमण्डल में क्लोरीन मूलकों को उत्पन्न करने वाले एवं ओजोन परत को क्षति पहुँचाने वाले परिवहनीय कारक हैं ।

ओजोन छिद्र ( The Ozone Hole )-

सन् 1980 में वायुमण्डलीय वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका पर कार्य करते हुए दक्षिणी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत के क्षय के बारे में बताया जिसे सामान्य रूप से ‘ ओजोन छिद्र ‘ कहा जाता है ।

गरमी में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड तथा मेथेन क्रमशः क्लोरीन मोनोऑक्साइड तथा क्लोरीन परमाणुओं से अभिक्रिया करके क्लोरीन सिंक बनाते हैं , जो ओजोन – क्षय को काफी हद तक रोकता है ।

ओजोन परत के क्षय के प्रभाव
Effects of Depletion of the Ozone Layer

ओजोन परत के क्षय के कारण अधिक पराबैंगनी विकिरण क्षोभमण्डल में छनित होते हैं , जिनसे त्वचा का जीर्णन ( ageing ) , मोतियाबिंद , सनबर्न , त्वचा- कैंसर जैसी बीमारियाँ होती हैं तथा इससे पादपप्लवकों की मृत्यु तथा मत्स्य उत्पादन में कमी होती है ।

पौधों के प्रोटीन , पराबैंगनी विकिरणों से आसानी से प्रभावित हो जाते हैं , जिससे कोशिकाओं में हानिकारक उत्परिवर्तन होता है ।

इसके कारण पत्तियों से जल का वाष्पीकरण बढ़ जाता है , जिससे मिट्टी की नमी कम हो जाती है । बढ़े हुए पराबैंगनी विकिरण रंगों एवं रेशों को भी हानि पहुंचाते हैं , जिससे रंग जल्दी हल्के हो जाते हैं ।

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