ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है। निम्न सभी टॉपिक की महत्वपूर्ण जानकारी नीचे दी गयी है
- ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ( First Law of Thermo-dynamics )
- ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का गणितीय रूप
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ( First Law of Thermo-dynamics )
यह ऊर्जा संरक्षण का नियम है तथा यह नियम रॉबर्टमेयर व हेल्महोल्ट्ज द्वारा दिया गया था ।
इस नियम के अनुसार ऊर्जा को न तो उत्पन्न किया जा सकता है , और न ही इसे नष्ट किया जा सकता है ।
यद्यपि एक प्रकार की ऊर्जा को दूसरी प्रकार की ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है । इस नियम का कोई अपवाद नहीं है ।
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अन्य कथन निम्नलिखित है
- ब्रह्माण्ड की कुल ऊर्जा निश्चित होती है अर्थात् किसी निकाय तथा उसके परिवेश की कुल ऊर्जा स्थिर रहती है ।
- किसी प्रक्रम में यदि ऊर्जा के किसी रूप की निश्चित मात्रा लुप्त होती है तो उसके तुल्य मात्रा में ऊर्जा दूसरे रूप में उत्पन्न हो जाती है ।
- एक विलगित निकाय की ऊर्जा स्थिर होती है ।
ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का गणितीय रूप
Mathematical Form of First Law of Thermodynamics
किसी निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि दो प्रकार से की जा सकती है – निकाय को ऊष्मा देकर तथा निकाय पर कार्य करके ।
माना कि किसी गैसीय निकाय की प्रारम्भिक अवस्था में उसकी आन्तरिक ऊर्जा U1 है , यह निकाय ऊष्मा की कुछ मात्रा ( q ) अवशोषित करता है तथा इस पर कार्य ( w ) किया जाता है । इसकी आन्तरिक ऊर्जा U2 हो जाती है । अतः निकाय की ऊर्जा में वृद्धि
△U = U2 – U1
तथा △U = q + w यह समीकरण ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम का गणितीय रूप है । यहाँ q तथा w अवस्था फलन नहीं है लेकिन △U एक अवस्था फलन है ।
( i ) जब निकाय द्वारा प्रसार कार्य किया जाता है तो –
W = -P△V
अतः △U = q- p△V
या q = △U – p△V
( ii ) जब निकाय पर कार्य किया जाता है अर्थात् संपीडन कार्य होता है , तो
W = P△V
अतः AU = q + P△V
q = AU – P△V
( iii ) एक विलगित निकाय में यदि ऊष्मा या कार्य के रूप में ऊर्जा परिवर्तन न हो तब w = 0 तथा q = 0 अत : △U = 0
( iv ) समआयतनीय प्रक्रम के लिए △V = 0 अतः q=△U या qv= △U अर्थात् स्थिर आयतन पर निकाय द्वारा अवशोषित ऊष्मा से केवल निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है ।